Saturday 11 January 2014

मंगल मंगल - ३


रातमे आसमानमे चमकते हुवे चाँदसितारोंको गौरसे देखनेसे उनके बारेमे बहुत कुछ जानकारी मिल जाती है। दिनमे सूरजकी तेज रोशनीकी वजहसे कोई तारा दिखाई नही देता, सूरजके ढल जानेके बाद रातके अंधेरेमेही उन्हे देखना पडता है। वस्तुतः ये सभी तारे हमेशा ही अपनी जगहपरही टिके रहते हैं, मगर पृथ्वीके घूमनेकी वजहसे हमे वे पूर्वकी दिशासे पश्चिमकी तरफ धीमे धीमे चलते हुवे दिखाई देते है। सूर्यास्तके समय जो तारे पूरब दिशामें दिखते हैं वे रातभरमे सारे आसमानको पार कर पश्चिम दिशामे आकर गायब हो जाते हैँ और उनकी जगह दूसरे तारे, जो सायंकालके समय जमीनके नीचे छिपे रहते है, अब आसमानमे आये हुवे दिखाई देते हैं । इस पूरे आकाशमंडलके बारह समान हिस्से किये गये। इनमेसे हर हिस्सेमे दिखनेवाले कुछ तेजस्वी सितारोंके बिंदुओंको जोडकर किसी आकृतीकी कल्पना की गयी और उनके नाम उन समूहोंको दिये गये। उन्हे हम राशी कहते हैं। किसीभी समय जिस राशीके सितारे सूरजके आसपास होते हैं वह सितारे भी हर सुबह सूर्योदयके समय पूरबकी दिशासे आसमानमे आते हैं और सूरजके साथसाथ शामके समय पश्चिम दिशामे जाकर जमीनके नीचे चले जाते हैं, मगर सूरजकी रोशनीकी वजहसे दिनमे हम उन्हे देख नही पाते। रातमे वे खुद जमीनके नीचे होनेकी वजहसे हमें दिखायी नही देते।

आजकल सूरज धनु राशीके अंतिम हिस्सेमे है और जल्दही उसका मकर राशीमे प्रवेश होनेवाला है। इस वजहसे धनु और मकर राशीके कुछ तारे हम रातमे नही देख सकते। सूरजके डूबनेके पश्चात जब अंधेरा हो जायेगा तब हमे पश्चिम दिशाके क्षितिजपर मकर राशीका कुछ हिस्सा नजर आयेगा। पश्चिमसे पूरबकी तरफ देखनेपर कुंभ, मीन, मेष, वृषभ और मिथुन राशी नजर आएगी। ये सारे सितारे सारी रातभर धीरे धीरे पश्चिमकी दिशामे लुढकते रहेंगे। दूसरे दिन सूर्योदयके पहले जबतक आसमानमे अंधेरा होगा उस समयतक कुंभ, मीन, मेष, वृषभ राशियाँ गायब होगी और मिथुन राशी पश्चिमी छोरतक पहूँची होगी औऱ उसके पीछे कर्क, सिंह, कन्या, तुला और वृश्चिक ये राशीयाँ आसमानमे विराजमान होगी। चंद्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र और शनि ये ग्रह इनमेसे किसी ना किसी राशीमे होंगे और उस राशीमे ये ग्रह भी हमे दिखाई देंगे।

मगर इनमेसे कोईभी ग्रह हमेशा एकही राशीमे नही रहता। सूरज, चंद्रमा और मंगल, बुध आदि सारे ग्रह अलग अलग रफ्तारसे राशीमंडलमे भ्रमण करते नजर आते है। राशीमे स्थित अन्य सितारोंकी तुलनामे वे थोडी धीमी गतीमे चलते हुवे पिछडते रहते है और पश्चिमसे पूरबकी दिशामे एक एक राशीको पार करते रहते हैं। मगर उनकी यह गति बहुतही धीमी रहती है। घंटाभरभी टकटकी लगाकर आसमानमे देखें तो वह अपने इर्दगिर्द जो सितारें हैं, उनके साथही दिखेंगे। चाँदको एक राशीका अंतर पार करनेके लिये सवा दो दिन याने चौवन घंटे इतना समय लगता है। सूर्य, बुध और शुक्र एक राशीमे प्रवेश करनेके बाद महीनाभर तक उसी राशीसे गुजरते है। गुरूग्रह हर राशीमे पूरे एक साल तक रहता है और शनी ढाई साल। मंगलका भ्रमणकाल अनिश्चित है, फिरभी उसे हर राशी पार करनेके लिये कमसे कम डेढ महिना तो लगही जाता है।

जिस तरह भारत ओर पाकिस्तामने जैसे दो देशोंमे एक सीमारेखा निश्चित की गयी है वैसी इन राशीयोंकी कोई स्पष्ट सीमारेखा किसीने आकाशमे खीचकर नही रखी है। अब १४ जनवरीको मकरसंक्रांतीके दिन सूरज धनु राशीसे निकलकर मकर राशीमे प्रवेश करेगा, तब हमें उसका कोई नजारा आकाशमे दिखनेवाला नही है। यह घटना सिर्फ गणितके आधारपरही निश्चित की जाती है। प्राचीन कालमें सैकडों वर्षोंतक इन सभी ग्रहोंके भ्रमणका बारीकीसे अध्ययन करनेके बाद हमारे पुरखोंने ये गणित बनाये और उसका प्रयोग होता आ रहा है। आकाशमे कौनसे राशीमे कौनसा ग्रह स्थित है इसका नक्शा कुंडलीमे दिखाया जाता है। किसीकी जनमकुंडलीका बस इतनाही अर्थ होता है कि उस व्यक्तीका जब जन्म हुवा उस वक्त कौनसी राशीमे कौनसा ग्रह उपस्थित था। सैकडों साल पहले जिस जमानेमे कॅलेंडर या डायरी नही होती थी, तारीख, महीना और वर्षकी गणना नही होती थी, उस जमानेमे कालगणनाकी दृष्टीसे यह उपयुक्त जानकारी थी।


चूँकी ये सारे ग्रह अपनी गतीसे आकाशमंडलकी परिक्रमा करते रहते है, अलग अलग समय वे अपनी पहली जगहसे हटकर कहीं और दिखाई देते है, इसके कारण अलग अलग लोगोंकी जन्मकुंडली भिन्न होती है। आज याने ११ जानेवारी २०१४ के दिन कौनसा ग्रह किस राशीमे है यह ऊपर दिये चित्रमे दिखाया है। आज जिसका जन्म हुवा हो उस बालककी कुंडली कुछ इस तरहकी होगी। जैसे ऊपर लिखा है, सारे ग्रहोंकी गती बहुतही धीमी होती है और वे अपनी राशी रोज रोज नही बदलते। फिर भी राशीभविष्य बतानेवाले या तथाकथित ज्योतिष जाननेवाले पंडित लोग हररोज नया भविष्य सुनाते रहते हैं। इतनाही नही, अमूक ग्रह सातवे या दसवे स्थानमे है या तमूक ग्रह धनस्थान या संतानस्थानपर है इस वजहसे आजका भविष्य इस प्रकारका होगा इस तरहकी कोई मनगढंत दलीलेंभी उसके साथ देते रहते है। वास्तवमे सारे ग्रह जहाँके वहाँही रहते है।

ये साराही काल्पनिक मामला होनेकी वजहसे भिन्न ज्योतिषियोंकी कल्पनाशक्ती अलग दिशामें उडाने भरती है और वे अलग अलग कहानियाँ गचकर सुनाते है। एकही दिनके चार अखबार और एकही महीनेकी चार पत्रिकांमे बताया हुवा भविष्य पढेंगे तो वे बिलकुल अलग दिखायी देंगे। मगर उनके कुछ संकेतोंमे समानता होती है। मंगल इस नामके अनुसार उसे शुभकारक, संतोषदायी, अच्छा ग्रह होना चाहिये, मगर लगभग सारे शास्त्रीपंडित लोग मंगल ग्रहके नामके विपरित उसे पापग्रह मानते है। ऐसा क्यों और कबसे हो रहा है पता नही। मंगल ग्रह कभी जरासा सौम्य या बहुत उग्र हो सकता है, मगर वह है तो तापदायकही ऐसा समझा जाता है।  उसके बारेमे प्रायः मनमे डरही पैदा किया जाता है। जो विवाह वधू और वरकी जनमकुंडली देखकर और उनको मिलाकर तय किये जाते हैं, उनमे तो मंगलको अनन्यसाधारण महत्व दिया जाता है। जिस लडकीकी कुंडलीमे विशिष्ट स्थानोंपर मंगल बैठा हुवा रहता है, उसके पिताकी तो खैर नही। कोई वरपिता ऐसी कन्याको अपनी बहू बनाना नही चाहता।

आजकल बडी संख्यामे प्रेमविवाह होने लगे है। लडके और लडकियाँ आपसमेही शादी रचा देते है। पहलेके जमानेमे खानदानकी इज्जत वगैरे कारण उन दोनोंको घरसे या समाजसे बाहर कर दिया जाता था। आजभी कुछ जगह खाप पंचायत आदि संस्था बखेडा खडा कर देती है, मगर पढेलिखे लोग ऐसे विवाहको संमती देने लगे है। वह शादी सफल हो तो अच्छी बात है, मगर अगर उस दंपतीमे कोई अनबन हो जाये, तो उनके मातापिता उनकी जनमपत्रिका लेकर फौरन किसी ज्योतिषीके पास सलाह लेने पहूंच जाते है। वे ज्ञानीपंडित लोग सारा दोष बेचारे मंगल ग्रहके मथ्थे आसानीसे थोप देते है।

मंगल ग्रहभी अपनी पृथ्वीकी तरह पत्थर, मिट्टी, रेत आदिसे बना एक निर्जीव गोल है। उसके कोई नाक, कान, आँख, दीमाग, मन, बुद्धी वगैरा नही होते। वो ना कुछ सोच सकता है ना कुछ कर सकता है, ना किसीको लाभ पहूँचा सकता है, ना किसीका कुछ बिगाड सकता है। यह वस्तुस्थिती अगर लोगोंके समझमे आ जाये, तो उसके नामसे अनको कोई डरा धमका नही पायेगा, नाही वो लोग उसे किसी कारण दोषी मानेंगे।   

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