Monday 2 June 2014

ये जो है जिंदगी

इस पोस्ट में दी हुई कोई भी रचना मेरी खुदकी नही है। ये मुझे इंटरनेटपर मिली है। मै इनके कविवर्योंको नही जानता मगर उनका शुक्रगुजार हूँ।

क्या से क्या होते देखा है।

मैंने  हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है ....
उम्र के साथ जिंदगी को ढंग बदलते देखा है .. !!

वो जो चलते थे तो शेर के चलने का. होता था गुमान..
उनको भी  पाँव उठाने के लिए सहारे को तरसते देखा है !!

जिनकी नजरों की चमक देख सहम जाते थे लोग ..
उन्ही  नजरों को  बरसात  की तरह  रोते देखा है .. !!

जिनके  हाथों के  जरा से इशारे से  टूट जाते थे पत्थर ..
उन्ही  हाथों को  पत्तों की तरह  थर थर काँपते देखा है .. !!

जिनकी आवाज़ से कभी  बिजली के कड़कने का  होता था भरम ..
उनके  होठों पर भी जबरन  चुप्पी का ताला लगा देखा है .. !!

ये जवानी  ये ताकत  ये दौलत  सब कुदरत की. इनायत है ..
इनके रहते हुए भी  इंसान को  बेजान हुआ देखा है ... !!

अपने  आज पर  इतना ना  इतराना  मेरे यारों ..
वक्त की धारा में अच्छे अच्छों को  मजबूर हुआ देखा है .. !!!

  कर सको तो किसी को खुश करो....
  दुःख देते तो हजारों को देखा है.. ।

२३ ऑगस्ट २०१५

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आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है।
कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है।

रफ्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए, कुछ छूट गए ।
रूठों को मनाना बाकी है, रोतो को हँसाना बाकी है ।

कुछ हसरतें अभी अधूरी है, कुछ काम भी और ज़रूरी है ।
ख्वाइशें जो घुट गयी इस दिल में, उनको दफनाना अभी बाकी है ।

कुछ रिश्ते बनके टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए।
उन टूटे-छूटे रिश्तों के ज़ख्मों को मिटाना बाकी है ।

तू आगे चल में आता हूँ, क्या छोड़ तुझे जी पाऊंगा ?
इन साँसों पर हक है जिनका , उनको समझाना बाकी है।

आहिस्ता चल जिंदगी , अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है ।

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 ये जो ज़िन्दगी की किताब है।
ये किताब भी क्या खिताब है।
कहीं एक हसीं सा ख्वाब है।
कही जान-लेवा अज़ाब है।

कहीं छांव है कहीं धूप है।
कहीं और ही कोई रूप है।
कई चेहरे हैं इसमे छिपे हुये।
एक अजीब सा ये निकाब है।

कहीं खो दिया कहीं पा लिया।
कहीं रो लिया कहीं गा लिया।
कहीं छीन लेती है हर खुशी।
कहीं मेहरबान ला-ज़वाब है।

कहीं आंसू की है दास्तान।
कहीं मुस्कुराहटों का है बयान।
कहीं बरकतों की हैं बारिशें।
कहीं तिशनगी बेहिसाब है।

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जो चाहा कभी पाया नहीं,
जो पाया कभी सोचा नहीं,
जो सोचा कभी मिला नहीं,
जो मिला रास आया नहीं,
जो खोया वो याद आता है,
पर जो पाया - संभाला जाता नहीं।।

क्यों अजीब सी पहेली है ज़िन्दगी,
जिसको कोई सुलझा पाता नहीं ?
जीवन में कभी समझौता करना पड़े
तो कोई बड़ी बात नहीं है,
क्योंकि  झुकता वही है जिसमें जान होती है,
अकड़ तो मुरदे की पहचान होती है।

ज़िन्दगी जीने के दो तरीके होते है!
पहला: जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो.!
दूसरा: जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो.!

जिंदगी जीना आसान नहीं होता;
बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता.!

जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है;
कभी हंसाती है तो कभी रुलाती है;
पर जो हर हाल में खुश रहते हैं;
जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है।

चेहरे की हँसी से हर गम चुराओ;
बहुत कुछ बोलो पर कुछ ना छुपाओ;
खुद ना रूठो कभी पर सबको मनाओ;
राज़ है ये जिंदगी का बस जीते चले जाओ।

"गुजरी हुई जिंदगी को कभी याद न कर,
तकदीर मे जो लिखा है उसकी फरियाद न कर।
जो होगा वो होकर रहेगा,
तु कलकी फिक्र मे अपनी आज की हँसी बर्बाद न कर।
हंस मरते हुये भी गाता है
और ... मोर नाचते हुये भी रोता है।।

 . .. .  . . . . . . . . . . . . . .  आंतर्जालसे. कविः अज्ञात

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ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नही,
और क्या जुर्म है पता ही नहीं |
इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं,
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं ।|

ज़िन्दगी, मौत तेरी मंज़िल है,
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं ।
सच घटे या बड़े तो सच न रहे,
झूठ की कोई इन्तहा ही नहीं ।|

ज़िन्दगी, अब बता कहाँ जाएँ,
ज़हर बाज़ार में मिला ही नही ।
जिसके कारण फ़साद होते हैं
उसका कोई अता-पता ही नही ।।

धन के हाथों बिके हैं सब क़ानून,
अब किसी जुर्म की सज़ा ही नही ।
कैसे अवतार कैसे पैग़म्बर,
ऐसा लगता है अब ख़ुदा ही नही ।।

उसका मिल जाना क्या, न मिलना क्या
ख्वाब-दर-ख्वाब कुछ मज़ा ही नही ।
जड़ दो चांदी में चाहे सोने में,
आईना झूठ बोलता ही नहीं ।|

अपनी रचनाओं में वो ज़िन्दा है
‘नूर’ संसार से गया ही नहीं

~कृष्ण बिहारी 'नूर'

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महँगी से महँगी घड़ी पहन कर देख ली,
वक़्त फिर भी मेरे हिसाब से कभी ना चला ...!!"

युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे ..
पता नही था की, 'कीमत चेहरों की होती है...!!'

मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,
पर सुना है सादगी में लोग जीने नहीं देते...!!'


 

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