Friday 4 April 2014

कौन है आपका दुष्मन?

एक दिन सभी कर्मचारी जब ऑफिस पहुंचे तो उन्हें गेट पर एक बड़ासा नोटिस लगा दिखा।
"इस कंपनीमें जो व्यक्ति आपको आगे बढ़ने से रोक रहा था कल उसकी मृत्यु हो गयी है।
हम आपको उसे आखिरी बार देखनेका मौका दे रहे हैं, कृपया बारी-बारी से मीटिंग हॉलमें जाएं और उसे देखनेका कष्ट करें।"
जो भी नोटिस पढता उसे पहले तो दुख होता लेकिन फिर जिज्ञासा हो जाती की आखिर वो कौन था जिसने उस की प्रगतीको रोक रखा था। और वो हॉल की तरफ चल देता। देखते देखते हॉलके बाहर काफी भीड़ इकठ्ठा हो गयी, गार्ड्सने सभीको रोक रखा था और उन्हें एक-एक करके ही अन्दर जाने दे रहे थे।
सबने देखा की अन्दर जाने वाला व्यक्ति काफी गंभीर होकर बाहर निकलता, मानो उसके किसी करीबी की मृत्यु हुई हो!
इस बार अन्दर जानेकी बारी एक पुराने कर्मचारीकी थी। उसे सब जानते थे, सबको पताथा कि उसे हर एक चीजसे शिकायत रहती है। कंपनीसे, सहकर्मियोंसे, वेतनसे, हर एक चीज से!
पर आज वो थोडा खुश लग रहा था। उसे लगा कि चलो जिसकी वजहसे उसकी जिंदगीमें इतनी समस्याएँ थीं वो गुजर गया। अपनी बारी आते ही वो तेजीसे ताबूतके पास पहुंचा और बड़ी जिज्ञासासे उचककर अन्दर झाँकने लगा। पर ये क्या? अन्दर तो एक बड़ा सा आइना रखा हुआ था।
यह देख वह क्रोधित हो उठा।  तभी उसे आईने के बगलमें एक सन्देश लिखा दिखा-
"इस दुनिया में केवल एक ही व्यक्ति है जो आपकी प्रगतिको रोक सकता है और वो आप खुद हैं। इस पूरे संसारमें आप वो अकेले व्यक्ति हैं जो आपकी ज़िन्दगीमें क्रांति ला सकता है।
आपकी ज़िन्दगी तब नहीं बदलती जब आपका बॉस बदलता है, जब आपके दोस्त बदलते हैं, जब आपके पार्टनर बदलते हैं, या जब आपकी कंपनी बदलती है। ज़िन्दगी तब बदलती है जब आप बदलते हैं, जब आप अपनी वैचारिक मर्यादाएँ तोड़ते हैं, जब आप इस बातको समझ लेते हैं कि अपनी ज़िंदगी के लिए सिर्फ और सिर्फ आप जिम्मेदार हैं।
सबसे अच्छा रिश्ता जो आप बना सकते हैं वो खुदसे बनाया रिश्ता है। खुदको देखिये, समझिये। कठिनाइयों से घबराइए नहीं, उन्हें पीछे छोडिये। विजेता बनिए, खुदका विकास करिए और अपनी उस वास्तविकता का निर्माण करिये जिसका आप करना चाहते हैं!
दुनिया एक आईने की तरह है।
वो इंसानको उसके सशक्त विचारोंका प्रतिबिम्ब प्रदान करती है। ताबूतमें पड़ा आइना दर असल आपको ये बताता है की जहाँ आप अपने विचारोंकी शक्तिसे अपनी दुनिया बदल सकते हैं, वहाँ आप जीवित हो कर भी एक मृतके समान जी रहे हैं।
इसी वक़्त दफना दीजिये उस पुराने ’मैं’ को और एक नए ’मैं’ का सृजन की जिये!!!"

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