Wednesday 22 January 2014

जनवरीमे बारिश

मुंबईमे कभी जाडेके मौसममे बारिश नही होती। मगर कैसे हुवा, क्यों हुवा, क्या खबर,  कल अचानकसे कुछ बूँदाबाँदी हो गयी इसपर कुछ कविओंने दो चार लाइणा बनाकर मोबाईलमे और फेसबुकमे मेसेज भेज दिये ।

*क्या लंबी रात थी.. विंटर में सोए,
और मान्सूमें जागे..

*जून में कभी होली नहीं होती
मे में कभी दिवाली नहीं होती
कोई प्यार भरा दिल रोया होगा
वरना जानेवारी में कभी बारिश नहीं होती

*हमें क्या पता था, मौसम ऐसे रो पडेगा
हमनें तो बस अपनी सॅलरी स्लिप दिखाई थी आसमान को..

आज सुबह भगवानने दबंग पिक्चर देखी और वो बोले,
'आज ऐसा मौसम बनाएंगे की, कन्फ्युज हो जाओगे.. स्वेटर पहने या रेनकोट!!!'

Friday 17 January 2014

मंगल मंगल - ४


मेरा बचपन एक छोटेसे गाँवमे बीता। उन दिनों घरोंमे टेलिव्हिजन नही होता था और हमारे स्कूलमे कोई होमवर्क नही दिया जाता था। बिजलीके सप्लायका कोई भरोसा नही रहता था, वह कभीभी गायब हो जाती थी। या  उसकी व्होल्टेज बहुत कम होनेकी वजहसे उसकी धीमी रोशनीमे पढाई करनेमे न मन लगता था, न उसकी कोई जरूरत होती थी। कोई काम न होनेसे पूरा समय अपनाही होता था। बहुतसे लोगोंके घरोंमे बिजलीके तारभी नही लगे थे। गांवके सडकोंपर स्ट्रीटलाइटिंग नही के बराबरही होती थी। इस वजहसे सभी लोगोंको अपने सारे आवश्यक काम दिनभरकी रोशनीमेही करनेकी आदतसी हो गयी थी। शामके समय हम मैदान मे खेलने जाते थे तो अंधेरा होनेसे पहले घर वापस आना पडता था। थोडी देर बाद रातका खाना खाकर सोनेकी तैयारी शुरू हो जाती थी। बारिश या बहुत तेज हवा न हो तो हम बच्चेलोग प्रायः घरके छतपरही बिस्तर लगाकर लेटे हुवे आपसमे गपशप, मस्ती या एकदूसरेकी खिंचाई करते सो जाते थे। उस समय चारों ओर छाया हुवा घना अंधेरा और ऊपर आसमानमे चमकते चाँदसितारे इतनाही नजर आता था। नींद आनेतक उन्हेही देखते रहते थे। उनमेसे ज्यादा चमकीले तारे या तारकासमूहोंके नाम जान लिये थे और उनके दर्शन बार बार होते रहनेकी वजहसे उनको पहचानने लगे थे। अपनी गलीमे किस घरमे कौन रहते हैं इसका जैसे अपने आप पता लगही जाता है, उसी तरह कौनसे प्रमुख तारे और ग्रह रातके कौनसे वक्त आसमानमे किस जगह दिखायी देते हैं इसका पता लगने लगा था, उनमे रोज जो जरासा बदलाव आता था वह भी समझमे आने लगा था। सबसे निराला लाल रंगका मंगल ग्रह भी रातमे सोनेसे पहले या भोर भये उठनेसे पहले नजर आताही था और वह कब आसमाँमे रहता है इसका अंदाजा रहता था। वह उस वक्त कौनसी राशीमे और क्यूँ है इसका विचार करनेकी हमें जरूरत नही होती थी, न ही हमसे ये उम्मीद की जाती थी।

मगर बहुत प्राचीन कालसे कई विद्वान लोगोंने इन ग्रह और तारोंका सूक्ष्म अध्ययन किया और उनके भ्रमणके नियमोंको अच्छी तरहसे जान लिया। उस जानकारीके आधारपर खगोलशास्त्रका (अॅस्ट्रॉनॉमीका) विकास होता रहा। जिस कालमे कोई कॅलेंडर या डायरी नही हुवा करता थी उन दिनोंमे धरतीपर हो रही घटनाएँ कब हुई यह याद रखनेके या दूसरेको बतानेके लिये उनको आसमानमे हो रही घटनाओंके साथ जोडा जाता था। जिस दिन किसी राजकुमारका जन्म हुवा या किसी राजाकी मृत्यू हुई उस दिन सूरज, चंद्रमा, गुरू और शनि किन राशीमे थे इतनी जानकारी रखी जाती थी। इससे वह दिन तय हो जाता है। आज इस समय ये चार ग्रह जिन राशीयोंमे है उन्ही विशिष्ट स्थानोंपर वे चारों ग्रह साठ साल बादही दोबारा आएँगे। वक्तकी इतनी जानकारी एक औसत व्यक्तीके जीवनके लिये काफी होती है। जब जमीनपर और आकाशमे हो रही घटनाओंको इस तरह जोडा जाने लगा तब कुछ विद्वानोंने ऐसा सोचा कि जमीनपर होनेवाली घटनाएँ आसमानमे होनेवाले स्थित्यंतरसे प्रभावित होती होंगी। जमीनपर कल या परसों क्या होनेवाला है इसका पता आज नही रहता, मगर आकाशमे सारे ग्रह निश्चित गतीसे घूमते रहते हैं। कल, परसोंही नही, हफ्ते, महीने या सालोंके बादभी वे कौनसी राशीमे होंगे इसका पता गणित करनेसे लग जाता है। फिर उनकी स्थितीके अनुसार यहाँपर कोई शुभ या अशुभ घटना हो सकती है इस तरहकी अटकले लगायी जाने लगी और उसमेसे से ज्योतिषशास्त्रका (अॅस्ट्रॉलॉजीका) जन्म हुवा। सामान्य लोगोंको आसमाँसे ज्यादा जमीनपर होनेवाली घटनाओंकी फिक्र रहती है। इस वजहसे खगोलशास्त्रकी (अॅस्ट्रॉनॉमीकी) तुलनामे ज्योतिषशास्त्र (अॅस्ट्रॉलॉजी) ज्यादा पॉप्युलर हो गयी। न जाने क्यूँ, बेचारा मंगल ग्रह एक सुंदर और मंगलमय ग्रह होनेके बदले एक खतरनाक, दुष्ट और गुस्सैला पापग्रह बन बैठा।

सूरज, तथा सभी तारोंको पूर्व दिशामे उगते हुवे और आसमानमेसे गुजरते हुवे पश्चिम दिशामे अस्त होते हुवे हर कोई आदमी रोज देखता है। सूरज भलेही बहुत प्रकाशमान हों मगर उसका बिंब एक फुटबॉलजितनाही दिखता हैं। ग्रह और तारे तो एक बिंदूजैसे छोटे दिखते हैं। अपनी विशाल पृथ्वी इस विश्वके केंद्रस्थानपर होगी और सूरज, तथा सभी छोटे छोटे तारे उसे प्रदक्षिणा करते होंगे ऐसा लगता है। चार पाँचसो वर्ष पहलेतक सभी लोग ऐसाही मानते भी थे। मगर कोपरनिकस, केपलर, गॅलीलिओ आदि युरोपियन वैज्ञानिकोंने नयी जानकारी खोज निकाली और विश्वके बारेमे नये क्रांतीकारक विचार प्रस्तुत किये। उनके जीवनकालमे उन्हे स्वीकारा नही गया था, मगर उनके बाद आये वैज्ञानिकोंने उनके सिद्धांतोंको तर्कके आधारपर स्वीकार लिया। उनके बाद कई वैज्ञानिक आकाशस्थ ग्रहोंकी ओर अधिक ध्यान देने लगे। दूरबीनका आविष्कार होनेसे उसके सहारे आकाशका अध्ययन बारीकीसे होने लगा। तरह तरहकी और अधिकाधिक शक्तीशाली दूरबिने तथा अनेक अन्य उपकरण बनते गये और उनके माध्यमसे आकाशस्थ गोलोंकी कई तरहकी जानकारी उपलब्ध हई।

अन्य ग्रहोंकी तुलनामे मंगल ग्रह पृथ्वीसे नजदीक है, उसपर ध्यान देना स्वाभाविक था। जो मंगल ग्रह अपनी आँखोसे देखनेपर मात्र एक बिंदू नजर आता था, वह दूरबीनके सहारे काफी बडा दिखने लगा। वह सूर्यकी तरह विशालकाय तो नही है, पृथ्वीसेभी थोडा छोटा है इसका अंदाजा आ गया। वहाँकी जमीन, हवा, तपमान वगैराको गौरसे देखकर उस जमीन या वातावरणमें कौनकौनसे घटक कितनी मात्रामें उपलब्ध हैं इनकाभी अनुमान लगाया गया। जैसे ये जानकारी बढती गयी और उस ग्रहके बारेमे उत्सुकता या आकर्षणभी बढता गया।


.  . . . . . .  . . . . . . . . . . . . . . . . (क्रमशः)

Sunday 12 January 2014

पिटारेकी कहानी

इस ब्लॉगके पाठकोंकी संख्या आज एक सौ के ऊपर पहूँच गयी है। इनमे पचास पाठक विदेशमे रहते है। इससे ऐसा लगता है कि मेरा यह प्रयास सफल होनेकी दिशामे चल रहा है।  अब वक्त आ गया है कि मै इसके बारेमे दो टूक बोल दूँ। "खुदको 'आनंदजी' कहनेवाला ये कैसा आदमी है?" "इसने अपने ब्लॉगका नाम पिटारा क्यों रखा?" ये सवाल शायद आपके मनमें आये होंगे। कोई ये प्रश्न मुझे पूछे इससे पहलेही इनका उत्तर देना ठीक होगा।

तो शुरूसे शुरुवात करते है। छत्रपती शिवाजी महाराजके पिताश्री शहाजी महाराज, पुत्र संभाजी महाराज, मित्र तानाजी मालुसरे, येसाजी कंक आदि अनेक इतिहासकालीन प्रसिद्ध लोगोके नामका अंतिम अक्षर 'जी' हुआ करता था। उनके बाद भी महादजी, राणोजी, दत्ताजी आदि वीरोंके नाम इतिहासके पन्नोंमे मिलते हैं। ये नाम धारण करनेवाले लाखों लोग आज भी महाराष्ट्रमें है। इसका मतलब नामके अंतमे जी लगाना यहाँके लोगोंके लिये कोई अनूठी बात नही है। पर मैने या मेरे परिवारमें किसीने ये काम अभीतक नही किया था।

मेरे पुख्तैनी गाँवमे जहाँ मैने अपना बचपन बिताया वहाँ कोई भी हिंदीभाषी नही रहता था। शालेय शिक्षामे हिंदी भाषाका अध्ययन तो किया था, मगर किसीसे बोलनेकी ना जरूरत होती थी, ना ही कोई मौका मिलता था। नौकरी करनेके लिये जब मै मुंबई आया तब हमारे कार्यालयमे कश्मीरसे तमिलनाडू और गुजरातसे असमतक लगभग सभी भारतीय राज्योंसे आये हुए लोग थे। उनमे हिंदीभाषी लोग भी बडी संख्यामे थे। उनसे बातचित करते करते मैने हिंदी बोलना सीख लिया। हिंदी सिनेमा और टीव्ही सीरियल्स देखते हुवे उसमे और सफाई आती गयी।

शर्मा, वर्मा, गुप्ता, अग्रवाल वगैरे मेरे मित्र हमेशा एक दूसरेको शर्माजी, वर्माजी, गुप्ताजी इस तरह संबोधित करते थे। दो तीन शर्मा या गुप्ता इकठ्टे बैठे हो तो विनोदजी, सुदेशजी वगैरा कहते थे। मेरा संबोधन प्रायः घारेजी होता था, मगर कोई करीबी दोस्त कभीकभार आनंदजी भी बोल लेता था। सबसे पहले उन लोगोंने मेरा यह नामकरण किया था। उन दिनों कल्याणजी आनंदजी एक बेहद पॉप्युलर संगीत निदेशक जोडी हुवा करती थी। उनके असली नाम क्या थे ये मै नही जानता, मगर अगर वो सिर्फ कल्याण और आनंद होते तो दोनोंको मिलाकर कल्याणआनंद हो जाता। उसका उच्चार कल्याणानंद होता और वे स्वामी विवेकानंद या चिन्मयानंद जैसे कोई साधू सन्यासी प्रतीत होते। संगीत देते तो भी सभी लोग हमेशा उनसे 'गोविंद बोलो भाई गोपाल बोलो' जैसे भजनकी उम्मीद करते। मगर उनको तो प्रेमगीत और कॅबरेतकका म्यूजिक देना था। इसलिये कल्याण और आनंदके बीचमे एक जी लगाकर उनको अलग किया होगा और उससे तुक मिलाने हेतु आखिरमे एक और जी जोड दिया होगा। ऐसा मेरा सिर्फ तर्क है। सचमे क्या हुवा होगा इसका मुझे कोई पता नही।

मगर संगीतकार आनंदजीभाई मेरे इस नामकरणके प्रेरणास्रोत नही थे। मैने जब मराठी भाषामें अपना पहला ब्लॉग शुरू किया तब मुझे उसकी प्रक्रियाके बारे मे कुछ भी जानकारी नही थी। उसे एक नाम देना जरूरी है यह भी मै जानता नही था। मैने ब्लॉगस्पॉटका पन्ना खोला। उसने पहलेही ब्लॉगका नाम पूछा। मैने अपनाही नाम लिखना शुरू किया। ANANDGHA  यहाँतक आते आते मै उसके बारेमें सोचता रहा। अचानक मुझे साक्षात्कार हुवा की शायद यहाँ कुछ अलग लिखना होगा। फिर उसी क्षणमे मनमे एक विचार आया कि N लिखनेसे एक दूसरा शब्द बनता है। कुछ हदतक उस शब्दका इस ब्लॉगके साथ ताल्लुक भी हो सकता है। इस तरह उस ब्लॉगका नाम 'आनंदघन' हो गया। वह ब्लॉग इस तरह चला कि धीरे धीरे मेरी एक और नयी पहचान बन गया। उसे अबतक १६०००० से अधिक बार पढा गया है।

फेसबुकपर दाखिल होनेके बाद मैने अपने उस ब्लॉगके लिंक देना शुरू किया। मेरे मराठीभाषी और मराठी पढनेवाले अमराठी मित्र उसपर कॉमेंट्स देने लगे। वो पढकर कुछ हिंदीभाषिक मित्रोंने मुझे सुझाव दिया कि मै अपनी रचनाएँ हिंदीमें भी प्रस्तुत करूँ। उनका सम्मान करनेके हेतु मैने यह उपक्रम शुरू तो कर लिया है। अब कितना चलेगा इसका पता भविष्यमे लग जायेगा। इस हिंदी अनुदिनीके लिये एक नाम ढूँढना था। अन्य लोगोंकी तरह मै भी ब्लॉग्जमे प्रायः अपनी बात कहता हूँ । इसको मद्देनजर रखते हुवे आनंदके लेख, आनंदके बोल, आनंदका खजाना, आनंदका पिटारा आदि पर्याय उपस्थित हुवे। उसमे आनंदके लेख ये नाम कुछ ज्यादा ही यथार्थ था तथा बहुतही सामान्य लगता था। आनंदके बोल लिखूँ तो उसमे ये कठिनाई है कि मुझे पहचाननेवाले लोग जानते है कि आम तौरपर मै बहुत बातें नही करता, आनंदका खजाना लिखूँ तो उसमे रखनेके लिये अनमोल रतन कहाँसे लाऊँ? पढनेवाले बडी उम्मीदसे उसे खोलें और उनको वहाँ कंकड, पत्थर और काँचके टुकडेही मिले तो उनकी बडी निराशा होगी। आनंदका पिटारा ये नाम ठीक लगा। इसमें सिर्फ एक प्रॉब्लेम है। साहित्य और जीवन नवरससे बनता है। इस वजहसे आनंदके पिटारेमें भी अन्य स्वादोंका आना अनिवार्य है। इसके सिवा एक और दिक्कत ये है कि पाठकको इसमें आनंद भी मिले इसकी क्या गॅरंटी है?

मेरी यह दुविधा अचानक समाप्त हुई। कुछ दिन पहले मै रेल्वेमे सफर कर रहा था। हालाँकि मेरी टिकटपर कोच नंबर और सीट नंबर टाइप किया हुवा था, फिर भी प्लॅटफॉर्मपर खडी रेलगाडीकी डिब्बेमे चढनेसे पहले मैने वहाँपर लगी सूचिमें अपना नाम देखना चाहा। ऊपरसे नीचे तक देखता गया मगर घारे नामका कहींभी अतापता नही था। मैने जेबसे अपनी टिकट निकालकर कोच नंबर और सीट नंबर देखा और फिर चार्ट देखा। मेरी सीट किसी  'आनंदजी'को दी गयी थी। उसकी उम्र भी मेरे जितनीही थी और गंतव्य स्थान भी वही था। मेरे इस डुप्लिकेटसे मिलनेके वास्ते मै गाडीमें चढ गया। वैसेभी उस समय उस गाडीमे न चढता तो और कहाँ जाता? वहाँपर कोई शख्स नही बैठा था तो मैने सीटपर अपना कब्जा कर दिया। स्टेशमसे गाडी छूट गयी। थोडी देर बाद टीसी आया। मैने उसे अपना टिकट और आयडी दिखाया। उसने भी बिना कोई सवाल पूछे मान लिया कि मैही आनंदजी हूँ। रेलवेके कम्प्यूटर भी गजबका काम करते हैं। मेरा पहला नाम आनंद और सरनेमका पहला अंग्रेजी अक्षर जी को साथ लेकर असने देवनागरी लिपीमें आनंद जी टाइप कर दिया था। इस तरह मिला हुवा मेरा नया नाम मुझे उपयुक्त लगा और मैने वहीं तय किया कि अपने हिंदी ब्लॉगका नाम आनंदजीका पिटारा रखूँ। फिर मै उसमे जो चाहे रख सकता हूँ और इस पिटारेमे क्या बंद है इसकी कुछ उत्सुकता बनी रहेगी।

आप सबसे विनती है कि इस पिटारेको खोलते रहे और अपना अभिप्राय मुझे जरूर दे।

Saturday 11 January 2014

मंगल मंगल - ३


रातमे आसमानमे चमकते हुवे चाँदसितारोंको गौरसे देखनेसे उनके बारेमे बहुत कुछ जानकारी मिल जाती है। दिनमे सूरजकी तेज रोशनीकी वजहसे कोई तारा दिखाई नही देता, सूरजके ढल जानेके बाद रातके अंधेरेमेही उन्हे देखना पडता है। वस्तुतः ये सभी तारे हमेशा ही अपनी जगहपरही टिके रहते हैं, मगर पृथ्वीके घूमनेकी वजहसे हमे वे पूर्वकी दिशासे पश्चिमकी तरफ धीमे धीमे चलते हुवे दिखाई देते है। सूर्यास्तके समय जो तारे पूरब दिशामें दिखते हैं वे रातभरमे सारे आसमानको पार कर पश्चिम दिशामे आकर गायब हो जाते हैँ और उनकी जगह दूसरे तारे, जो सायंकालके समय जमीनके नीचे छिपे रहते है, अब आसमानमे आये हुवे दिखाई देते हैं । इस पूरे आकाशमंडलके बारह समान हिस्से किये गये। इनमेसे हर हिस्सेमे दिखनेवाले कुछ तेजस्वी सितारोंके बिंदुओंको जोडकर किसी आकृतीकी कल्पना की गयी और उनके नाम उन समूहोंको दिये गये। उन्हे हम राशी कहते हैं। किसीभी समय जिस राशीके सितारे सूरजके आसपास होते हैं वह सितारे भी हर सुबह सूर्योदयके समय पूरबकी दिशासे आसमानमे आते हैं और सूरजके साथसाथ शामके समय पश्चिम दिशामे जाकर जमीनके नीचे चले जाते हैं, मगर सूरजकी रोशनीकी वजहसे दिनमे हम उन्हे देख नही पाते। रातमे वे खुद जमीनके नीचे होनेकी वजहसे हमें दिखायी नही देते।

आजकल सूरज धनु राशीके अंतिम हिस्सेमे है और जल्दही उसका मकर राशीमे प्रवेश होनेवाला है। इस वजहसे धनु और मकर राशीके कुछ तारे हम रातमे नही देख सकते। सूरजके डूबनेके पश्चात जब अंधेरा हो जायेगा तब हमे पश्चिम दिशाके क्षितिजपर मकर राशीका कुछ हिस्सा नजर आयेगा। पश्चिमसे पूरबकी तरफ देखनेपर कुंभ, मीन, मेष, वृषभ और मिथुन राशी नजर आएगी। ये सारे सितारे सारी रातभर धीरे धीरे पश्चिमकी दिशामे लुढकते रहेंगे। दूसरे दिन सूर्योदयके पहले जबतक आसमानमे अंधेरा होगा उस समयतक कुंभ, मीन, मेष, वृषभ राशियाँ गायब होगी और मिथुन राशी पश्चिमी छोरतक पहूँची होगी औऱ उसके पीछे कर्क, सिंह, कन्या, तुला और वृश्चिक ये राशीयाँ आसमानमे विराजमान होगी। चंद्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र और शनि ये ग्रह इनमेसे किसी ना किसी राशीमे होंगे और उस राशीमे ये ग्रह भी हमे दिखाई देंगे।

मगर इनमेसे कोईभी ग्रह हमेशा एकही राशीमे नही रहता। सूरज, चंद्रमा और मंगल, बुध आदि सारे ग्रह अलग अलग रफ्तारसे राशीमंडलमे भ्रमण करते नजर आते है। राशीमे स्थित अन्य सितारोंकी तुलनामे वे थोडी धीमी गतीमे चलते हुवे पिछडते रहते है और पश्चिमसे पूरबकी दिशामे एक एक राशीको पार करते रहते हैं। मगर उनकी यह गति बहुतही धीमी रहती है। घंटाभरभी टकटकी लगाकर आसमानमे देखें तो वह अपने इर्दगिर्द जो सितारें हैं, उनके साथही दिखेंगे। चाँदको एक राशीका अंतर पार करनेके लिये सवा दो दिन याने चौवन घंटे इतना समय लगता है। सूर्य, बुध और शुक्र एक राशीमे प्रवेश करनेके बाद महीनाभर तक उसी राशीसे गुजरते है। गुरूग्रह हर राशीमे पूरे एक साल तक रहता है और शनी ढाई साल। मंगलका भ्रमणकाल अनिश्चित है, फिरभी उसे हर राशी पार करनेके लिये कमसे कम डेढ महिना तो लगही जाता है।

जिस तरह भारत ओर पाकिस्तामने जैसे दो देशोंमे एक सीमारेखा निश्चित की गयी है वैसी इन राशीयोंकी कोई स्पष्ट सीमारेखा किसीने आकाशमे खीचकर नही रखी है। अब १४ जनवरीको मकरसंक्रांतीके दिन सूरज धनु राशीसे निकलकर मकर राशीमे प्रवेश करेगा, तब हमें उसका कोई नजारा आकाशमे दिखनेवाला नही है। यह घटना सिर्फ गणितके आधारपरही निश्चित की जाती है। प्राचीन कालमें सैकडों वर्षोंतक इन सभी ग्रहोंके भ्रमणका बारीकीसे अध्ययन करनेके बाद हमारे पुरखोंने ये गणित बनाये और उसका प्रयोग होता आ रहा है। आकाशमे कौनसे राशीमे कौनसा ग्रह स्थित है इसका नक्शा कुंडलीमे दिखाया जाता है। किसीकी जनमकुंडलीका बस इतनाही अर्थ होता है कि उस व्यक्तीका जब जन्म हुवा उस वक्त कौनसी राशीमे कौनसा ग्रह उपस्थित था। सैकडों साल पहले जिस जमानेमे कॅलेंडर या डायरी नही होती थी, तारीख, महीना और वर्षकी गणना नही होती थी, उस जमानेमे कालगणनाकी दृष्टीसे यह उपयुक्त जानकारी थी।


चूँकी ये सारे ग्रह अपनी गतीसे आकाशमंडलकी परिक्रमा करते रहते है, अलग अलग समय वे अपनी पहली जगहसे हटकर कहीं और दिखाई देते है, इसके कारण अलग अलग लोगोंकी जन्मकुंडली भिन्न होती है। आज याने ११ जानेवारी २०१४ के दिन कौनसा ग्रह किस राशीमे है यह ऊपर दिये चित्रमे दिखाया है। आज जिसका जन्म हुवा हो उस बालककी कुंडली कुछ इस तरहकी होगी। जैसे ऊपर लिखा है, सारे ग्रहोंकी गती बहुतही धीमी होती है और वे अपनी राशी रोज रोज नही बदलते। फिर भी राशीभविष्य बतानेवाले या तथाकथित ज्योतिष जाननेवाले पंडित लोग हररोज नया भविष्य सुनाते रहते हैं। इतनाही नही, अमूक ग्रह सातवे या दसवे स्थानमे है या तमूक ग्रह धनस्थान या संतानस्थानपर है इस वजहसे आजका भविष्य इस प्रकारका होगा इस तरहकी कोई मनगढंत दलीलेंभी उसके साथ देते रहते है। वास्तवमे सारे ग्रह जहाँके वहाँही रहते है।

ये साराही काल्पनिक मामला होनेकी वजहसे भिन्न ज्योतिषियोंकी कल्पनाशक्ती अलग दिशामें उडाने भरती है और वे अलग अलग कहानियाँ गचकर सुनाते है। एकही दिनके चार अखबार और एकही महीनेकी चार पत्रिकांमे बताया हुवा भविष्य पढेंगे तो वे बिलकुल अलग दिखायी देंगे। मगर उनके कुछ संकेतोंमे समानता होती है। मंगल इस नामके अनुसार उसे शुभकारक, संतोषदायी, अच्छा ग्रह होना चाहिये, मगर लगभग सारे शास्त्रीपंडित लोग मंगल ग्रहके नामके विपरित उसे पापग्रह मानते है। ऐसा क्यों और कबसे हो रहा है पता नही। मंगल ग्रह कभी जरासा सौम्य या बहुत उग्र हो सकता है, मगर वह है तो तापदायकही ऐसा समझा जाता है।  उसके बारेमे प्रायः मनमे डरही पैदा किया जाता है। जो विवाह वधू और वरकी जनमकुंडली देखकर और उनको मिलाकर तय किये जाते हैं, उनमे तो मंगलको अनन्यसाधारण महत्व दिया जाता है। जिस लडकीकी कुंडलीमे विशिष्ट स्थानोंपर मंगल बैठा हुवा रहता है, उसके पिताकी तो खैर नही। कोई वरपिता ऐसी कन्याको अपनी बहू बनाना नही चाहता।

आजकल बडी संख्यामे प्रेमविवाह होने लगे है। लडके और लडकियाँ आपसमेही शादी रचा देते है। पहलेके जमानेमे खानदानकी इज्जत वगैरे कारण उन दोनोंको घरसे या समाजसे बाहर कर दिया जाता था। आजभी कुछ जगह खाप पंचायत आदि संस्था बखेडा खडा कर देती है, मगर पढेलिखे लोग ऐसे विवाहको संमती देने लगे है। वह शादी सफल हो तो अच्छी बात है, मगर अगर उस दंपतीमे कोई अनबन हो जाये, तो उनके मातापिता उनकी जनमपत्रिका लेकर फौरन किसी ज्योतिषीके पास सलाह लेने पहूंच जाते है। वे ज्ञानीपंडित लोग सारा दोष बेचारे मंगल ग्रहके मथ्थे आसानीसे थोप देते है।

मंगल ग्रहभी अपनी पृथ्वीकी तरह पत्थर, मिट्टी, रेत आदिसे बना एक निर्जीव गोल है। उसके कोई नाक, कान, आँख, दीमाग, मन, बुद्धी वगैरा नही होते। वो ना कुछ सोच सकता है ना कुछ कर सकता है, ना किसीको लाभ पहूँचा सकता है, ना किसीका कुछ बिगाड सकता है। यह वस्तुस्थिती अगर लोगोंके समझमे आ जाये, तो उसके नामसे अनको कोई डरा धमका नही पायेगा, नाही वो लोग उसे किसी कारण दोषी मानेंगे।   

Friday 10 January 2014

कुछ अटपटी सोच

इस अटपटी सोचपरभी थोडा गौर कीजिये ..  और छोड दीजिये।


१. मै तो हमेशाही शराबको ना कहता हूँ .... क्या करूँ, वो मेरी सुनतीही नही।
२. तलाककी एक बहुत अहम वजह है ...... शादी
३. अगर हर कोई चीज आपके रास्तेमे रोडे बन रही है ..... आप गलत रास्तेपर चल रहे होंगे।
४. सुरंगकी छोरसे आनेवाली रोशनी .... आ रहे ट्रेनके हेडलाइटसे आ रही हो।
५. जीनेकी कोई गारंटी नही है ... पहले पकवान (स्वीट डिश) खालो।
६. मुस्कुराते रहो .... दूसरे लोग उसकी वजह ढूँढनेमे लगे रहेंगे।
७. जमीनमे पैर गाडकर खडे रहोगे तो ... पजामा कैसे पहनोगे?
८. आप समयके पाबंद रहोगे तो ...... उसे देखनेवाला वहाँपर कोई भी नही होगा.
९. अगर किसीको कन्व्हिन्स कर नही सकते तो ..... उसे कन्प्यूज करो।
१० .गिरते समय कोई मरता नही .... अचानक गिरना रुक जानेसे जाती है।
११. जब तक यशकी चाभी मेरे हाथ आ जाती है .. किसीने ताला बदला होता है।
१२ यशकी ओर जानेवाला मार्ग ... हमेशा उसपर काम चल रहा होता है।

Monday 6 January 2014

मंगल मंगल - २



सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र और शनि इनमे राहू और केतू इन दो काल्पनिक ग्रहोंको जोडकर नवग्रह  माने गये हैं। उनमेंसे पहले सात ग्रहोंके नाम हप्तेके सात दिनोंको दिये हैं। हर हप्तेमें रविवार और सोमवारके पश्चात मंगलवार आता है, यह नाम उसे मंगल ग्रहसे मिला है। मगर पुराणोंमे मंगल ग्रहको कहींभी कोई महत्वपूर्ण स्थान दिखाई नही देता। पुराणकालमे बृहस्पती (गुरू) देवोके और शुक्राचार्य (शुक्र) दानवोंके गुरू होते थे और अपने अपने समूहोंको अधिकसे अधिक बलवान होनेके लिये वे दोनों मार्गदर्शन करते थे। उनका जिक्र अनेक पौराणिक कथाऔंमे किया जाता है। शनीमहाराजकी कुछ कथाएँ प्रसिद्ध है। उनकी अवकृपासे सभी भीरु लोग डरके मारे काँपते रहते थे। शायद इस डरके मारे शनिग्रहकी गणना देवोंमे होने लगी और जगह जगह उनके मंदिर बनाये गये। आजभी अनेक भक्तजन उनके दर्शन करने और पूजापाठ करनेके लिये बडी संख्यामे शनीमंदिरमें जाते रहते हैं। बेचारा बुध ग्रह भी मंगलकी तरह थोडा उपेक्षितही रहा है। उसका जिक्र भी कहीं नही होता। मगर हर वर्ष श्रावणमासमे महाराष्ट्रमे एक विशेष पट्टचित्रकी रोज पूजा की जाती है, उसमे कुछ अन्य देवताओंके साथ बुधमहाराजका दर्शन होता है। इस चित्रमें उसे हाथीपर सवार हुवे दिखाया जाता है और हर बुधवारके दिन उसकी पूजा की जाती है। मंगल ग्रह नामके देवताकी कोई तसवीर या मूर्ती या उसका कोई मंदिर मैने तो आजतक कहीं नही देखा, न ही उसके बारेमे कोई कथा या कहानी कभी सुनी है। कुछ अन्य देवताओंके विशाल मंदिरोंके बरामदेमे या दीवारोंपर नवग्रहका एक पॅनेल दिखायी देता है, उसमें मंगलग्रहकीभी एक धुंधलीसी छवि दिखायी देती है।  इंटरनेटपर ढूँढनेके बाद मुझे पहली बार उस देवताकी कुछ तसवीरें मिली।

नवग्रहस्तोत्रमें मंगलग्रहका वर्णन कुछ इस तरह किया गया है।
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् ।। ३ ।।
इस श्लोकका अर्थ है। धरतीके गर्भसे जन्मे हुवे, बिजलीजैसी चमकदार या प्रकाशमान प्रभाके धनी, हाथमे शक्तीको धारण किये हुवे, कुमारस्वरूप मंगलको मै प्रणाम करता हूँ.। मंगलका जनम धरणीके गर्भमेसे हुवा है ऐसे इस श्लोकमे लिखा है, मगर मंगलके इस जन्मस्थानके बारेमे कभीभी किसीनेभी गंभीरतासे सोचा नही है ऐसा लगता है। खगोलशास्त्रके अनुसार वह ग्रहभी पृथ्वीकी तरह और लगभग पृथ्वीके साथही अलगसे पैदा हुवा होगा।

हर रविवारके दिन सूर्यनमस्कार आदिके जरिये सूर्यकी आराधना तो की जाती है, मगर मंगलवारके दिन कितने लोगोंको मंगल ग्रहकी यादभी कभी आती होगी? महाराष्ट्रमें गणेशजीको मंगलमूर्ती मोरयाभी कहते हैं और मंगलवारके दिन उनकी पूजा, आराधना, प्रार्थना आदि की जाती है। जब कोई संकष्टी चतुर्थी मंगलवारके दिन होती है तब उसे अंगारकी चतुर्थी कहते हैं और उस दिनका महात्म्य कई गुना बढता है ऐसे मानते हैं। उस दिन पौ फटनेसेभी पहले मुंबईमे प्रभादेवी स्थित सिद्धीविनायक मंदिरमें गणेशजीके दर्शनके लिये कतारमे खडे होनेवाले लोगोंकी तादाद अब हजारोमे हो गयी है। मगर अंगारक यह शब्द अंगारसे उत्पन्न हुवा है और लाल रंगके मंगल ग्रहका यह एक नाम है यह जानकारी उनमें कितने लोगोंको होगी?  महाराष्ट्रमें श्रावण महीनेमे हर मंगलवारके दिन मंगलागौरीकी पूजा की जाती है। विवाहित महिलाओंके जीवनमे शादीके बाद पहली मंगलागौरपूजाकी रस्म बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है और वह बहुतही धूमधाम और हर्षउल्लासके साथ मनायी जाती है। इस समारोहके लिये हॉल बुक किये जाते हैं, नजदीकी रिश्तेदार और सभी सखियोंको न्योता दिया जाता है। मगर इन सभी कार्योंमे मंगल ग्रहकी कोई जगह नही होती है और ना ही किसीको उसकी याद आती है। 

सैकडों साल पहले जब घडीजैसे अन्य साधन नही होते थे तब आकाशमे देखकर समयका निर्धारण किया जाता था। आज आसमानमे दिखनेवाले किसीभी ग्रहमें किसीकोभी कोई रुचि होती ही नही। स्कूलकी पढाईमें कभी सूर्यमालिकापर एकाध पाठ पढा होगा। 'बॉर्नव्हिटा क्विझ काँटेस्ट' किंवा 'कौन बनेगा करोडपती' जैसे प्रोग्रामोंमे उसके बारेमे कोई सवाल पूछा गया तो उस ज्ञानकी याद कभी कभार आती होगी। अन्यथा बहुतही कम लोग खगोलशास्त्रमें (अॅस्ट्रॉनॉमीमें) जरासीभी दिलचस्पी लेते हैं। जमीनपर बढती हुवी बिजलीके दीपोंकी कृत्रिम रोशनी और धुवेकी वजहसे हवामे बढता हुवा धुंधलापन इनकी वजहसे आजकल आसमानके सितारे ठीकसे दिखाई देतेही नही। फिर उन्हे गौरसे देखनेकी और उनके बारेमे कोई जानकारी रखनेकी चेष्टा कौन करेगा? मुंबईजैसे महानगरोंमे तो सिमेंटकाँक्रीटके घने जंगल होते हैं। अपने घरकी खिडकीसे आसमानका हजारवाँ हिस्सा शायद दिखाई देता है। आसमानके उतनेसे टुकडेमे आकर आपको दरसन देनेकी कृपा कौनसे ग्रह या सितारें करेगे ? 

मेरे बचपनमे हम लोग अकसर घरके छतपर सोया करते थे। सभी तरफ घना अंधेरा और ऊपर आसमानमे चमचमाते सितारे होते थे। उन्हे देखते हुए वे जानेपहचानेसे हो गये थे। लगभग सभी ग्रह हररोज कुछ समयके लिये आसमानमे पधारतेही है। रातमे नींद आनेसे पहले या सुबह जागनेसे पहले उनका दर्शन होता था। अपनी गलीमे किस घरमे कौन रहता है यह जैसे अपनेआप समझमे आ जाता है, उसी तरह कौनसा ग्रह रातके किस समय आसमानमे कहाँ होता है इसका पता रहता था। वे किस तरह एक राशीमेसे दूसरी राशीमे जाते हुवे आगे बढते रहते हैं इसका यथार्थ समझमे आता था । मानों मेरी उनसे जानपहचानसी हो गयी थी। ये सुंदर और तेजस्वी मित्र कभी रुष्ट होकर मेरा कुछ बिगाडेंगे ऐसा डर उन्हे देखते हुवे मुझे कभी नही लगा था। मगर आजके जीवनमे इन आकाशस्थ ग्रहोंसे किसीका कोई नाता नही रहा। मनुष्यके मनमे हमेशा अज्ञातका डर (फियर ऑफ अननोन) रहता आया है। इसी कारण इतिहासपूर्व कालमे जिस तरह कई लोग ग्रहोंसे डरते थे शायद उस तरह आजके लोग भी उनसे डरने लगे हैं। चंद होशियार लोग ज्योतिषी बनकर इस बातका लाभ उठानेका प्रयास करेंगेही। आजकल किसीभी पत्रिका या अखबारमे कहीं ना कहीं राशीभविष्य दिया होता है। कुछ लोग सबसे पहले उसी पन्नेको देखते हैं। हर किसी टीव्ही चॅनलपर राशीभविष्य बतानेवाले बाबा जरूर पधारते रहते हैं। शहरके कोनेकोनेमे उनकी दुकाने लगी रहती है। उनसे मिलनेवालोंकी तादाद इतनी अधिक होती है कि उनसे मिलनेके लिये अॅपॉइंटमेंट लेने पडते है। ऐसे भोले लोगोंको डरानेके वास्ते मंगल ग्रह काफी फायदेमंद होता है।   

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Saturday 4 January 2014

फर्क सिर्फ इतनाही था

यह रचना घूम फिरकर बार बार इंटरनेटपर आ जाती है। शायद मेरी तरह बहुतसे अन्य लोगभी इसे पसंद करते हैं। इस कविताके कवि या शायर कौन है यह मै नही जानता। जोभी हो उसे सादर प्रणाम। जीवन और मौत इन दो भिन्न स्थितीयोंमें कितनी समानता है और फर्क, इसका बहुतही मार्मिक  विश्लेषण इस कृतीमें है।

फर्क सिर्फ इतनासा था।

तेरी डोली उठी, मेरी मय्यत उठी
फूल तुझपरभी बरसे, फूल मुझपरभी बरसे
फर्क सिर्फ इतनासा था।
तू सज गयी, मुझे सजाया गया ।

तू भी घरको चली, मैभी घरको चला
फर्क सिर्फ इतनासा था।
तू उठके गयी, मुझे उठाया गया ।

मेहफिल वहाँ भी थी. लोग यहाँ भी थे
फर्क सिर्फ इतनासा था।
उनका हँसना वहाँ, इनका रोना यहाँ ।

काझी उधर भी था, मौलवी इधर भी था,
दो बोल तेरे पढे, दो बोल मेरे पढे,
तेरा निकाह पढा, मेरा जनाजा पढा
फर्क सिर्फ इतनासा था।

तुझे अपनाया गया, मुझे दफनाया गया
फर्क सिर्फ इतनाही था।

Thursday 2 January 2014

बेटा और बेटी

मेरे डाकबक्सेमे आज एक कविता आयी। वह इस प्रकार है।

    बेटा वारिस है, बेटी पारस है।
    बेटा वंश है, बेटी अंश है।
  बेटा आन है, बेटी शान है।
  बेटा तन है, बेटी मन है।
   बेटा मान है, बेटी गुमान है।
   बेटा संस्कार है, बेटी संस्कृती है।
 बेटा दवा है, बेटी दुवा है।
 बेटा भाग्य है, बेटी विधाता है।
   बेटा शब्द है, बेटी अर्थ है।
   बेटा गीत है, बेटी संगीत है।
 बेटा प्रेम है, बेटी पूजा है।

क्या यह सभी बेटे और बेटियोंको मंजूर है?

किसीने ऐसा कहा है कि बेटा उसकी शादी होनेतक अपना होता है, जबकि बेटी उम्रभरके लिये होती है। मुझे ऐसा लगता है कि यह कहनेवाला जरूर कोई फिरंगा होगा। बेटा और बेटीके बारेमे इस तरहकी संकल्पना पश्चिमी जगतसे आयी होगी। अपने यहाँ तो हमेशा बेटियोंको पराया धन समझा जाता था। पुराने जमानेमे बेटीके पिता उसके ससुरालमे पानीतक नही पीते थे। ऐसी परिस्थितीमे बेटी चाहती तो भी माँबापकी सहायता नही कर सकती थी। बेटेकोही बुढापेकी लाठी माना जाता था। वृध्द मातापिताकी देखभाल उसका कर्तव्य होता था। संयुक्त परिवारमे मातापिता बेटे, बहुएँ, पोते वगैरा लोगोंके साथही रहा करते थे। बेटी उसके ससुरालमे पती, सास, ससुर इन लोगोंके साथ रहती थी।

आजके जमाने नौकरी करनेके लिये बेटे किसी दूसरी जगह चले जाते हैं। कई बार वे विदेशमें जाकर बस लेते हैं। एकही शहरमें रहनेवाले बेटेभी किन्ही कारणोंसे अलग रह लेते हैं।

परिवारके छोटे होनेकी वजहसे हर मातापिताको एक या दो बेटे या बेटियाँही होती है। उनमेंसे कोई पासमे रहते होगे और कोई दूर परदेसमे गये हो।  जरूरत पडनेपर जो कोई पासमें होगा वही तुरंत पहूँच सकता है। आजकल जो कानून है, उनमे बेटियोंकोभी वारिस माना जाता है। अगर किसीके घरमे बेटा होही नही उसके लिये तो बेटी या बेटियाँही सबकुछ होता है। ऐसी काफी उलझने अबके जमानेमे पैदा हुई है।

इन बदलती हुई स्थितीयोंमे पुराने दस्तूर चल नही सकते। मातापिता, बेटे, बेटियाँ इन सभी लोगोंको नये विचार, नये समीकरण तय करने पडते हैं। सभी लोगोंको जिसमें आनंद मिले ऐसे मधुर संबंध रखना होशियारी है। 

 

Wednesday 1 January 2014

मंगल मंगल - १


मंगलम् भगवान विष्णुः । मंगलम् गरुङध्वजः ।। मंगलम् पुण्डरीकाक्षः । मंगलायतनो हरिः ।।
विख्यात, ज्येष्ठ और श्रेष्ट गायक पंडित जसराजजीके गायनके जितने कार्यक्रम मैने सुने हैं, उनको अपने गायनकी शुरुवात इस श्लोकके साथ करते हुवे सुना है। उससे एक मंगलमय माहौल बन जाता है। मेरे इस पहले हिन्दी ब्लॉगकी शुरुवातभी मंगलमय हो और उसमे मुझे सफलता मिले ऐसी प्रार्थनाके साथ मै अपना यह पहला लेख लिखनेकी कोशिश कर रहा हूँ। इसी हेतु मैने मंगल यह विषयभी चुना है। 

अंधेरी रातमें आसमानमें लाखों सितारे टिमटिमाते हुए दिखायी देते हैं। उनमेंसे जो स्पष्ट रूपसे दिखते हैं उनके समूह (काँस्टेलेशन्स) सप्तर्षी, बिग बेअर आदि नामोंसे जाने जाते हैं। किसीभी समय हमें आकाशका आधा हिस्सा दिखाई देता है और आधा हिस्सा जमीनके नीचे छिपा रहता है। वस्तुतः आकाशमें जो सितारे दिखाई देते हैं वे सारे अपनी जगहपरही स्थित रहते हैं, मगर पृथ्वीके घूमनेकी वजहसे हमे वे आकाशमार्गमे पूरबसे पश्चिमकी तरफ चलते हुवे दिखाई देते हैं। पश्चिम क्षितिजपर पहूँचनेके बाद वे जमीनके नीचे जाकर अदृष्य होते हैं और जमीनके नीचे छिपे हुवे दूसरे तारे पूर्वदिशासे उदित होकर आसमानमें आकर चमकने लगते हैं। इस पूरे गोलाकार नभोमंडलके बारा समान हिस्से बनाये गये और उनके हर हिस्सेमे जो सितारे दिखते हैं उनके समूहोंको मेष, वृषभ, मिथुन आदि राशियोंके नाम दिये गये है। हर राशी माने आकाशका एक बटा बारावा हिस्सा होता है।

आकाशमे दिखनेवाले इन असंख्य सितारोंमें पाँच तेजोगोल सबसे निराले हैं। अन्य सितारोंकी अपेक्षा वे जादा प्रकाशमान हैं और किसीभी राशीमें शामिल नही होते हैं। इसका मतलब वे जिस किसी राशीमें याने आसमानके जिस हिस्सेमे दिखते हों उस राशीके अन्य सितारोंके धीरे धीरे करीब आते हुवे और बादमें उनसे दूर जाते हुवे दिखाई देते हैं। दूर जाते जाते वे उस राशीको पार करके दूसरे राशीमे प्रवेश करते हैं, फिर तीसरेमे, चौथीमें इस तरह ये ग्रह सभी बारा राशियोंमे भ्रमण करते रहते हैं। उन पाँच गोलोंकी ये विशेषता देखते हुवे उनके लिये ग्रह नामकी अलग श्रेणी बनायी गयी। प्राचीन कालमें ग्रह इस शब्दका अर्थ सिर्फ प्लॅनेट इतना सीमित नही था। सूरज और चंद्रमाको भी वे लोग ग्रह ही कहते थे। उनके साथ मंगळ, बुध, गुरू, शुक्र और शनि इन पाच ग्रहोंको लेकर सात दिनोंको उनके नामसे जाना गया। इस तरहसे इन सातोंको लेकर सात दिनका सप्ताह बन गया।

हररोज सूर्योदयके साथ दिन शुरू होता है और सूरजके डूबनेके बाद रात। दिन और रातका अवधी छह महिनेतक लगातार बढता रहता है और छह महीनेतक वह घटता रहता है, मगर दिन और रात मिलाकर हमेशा चौबीस घंटेही होते हैं। इन दोनो अवधियोंको मिलाकर वर्षका अवधी तय हुवा। अमावास्याकी रातमे चंद्रमा बिलकुलही दिखाई नही देता। असलमें उस रातभर वह आसमानमे होताही नही, बल्कि दिनभर सूरजके साथ उसके बगलमे रहता है और उसका अंधकारमय हिस्सा पृथ्वीकी तरफ होनेकी वजहसे सूरजकी तेज रोशनीमे वह बिलकुलही नही दिखता है। उसके बाद हर दिन चंद्रमाका उदय और अस्त थोडी थोडी देरसे होनेकी वजहसे वह सूरजसे दूर दूर जाता हुवा दिखता है और उसका आकार धीरे धीरे बढता है। पूनमकी शाम सूरजके डूबनेके साथ पूर्ण गोलाकार चाँदका आसमानमे आगमन होता है और रातभर रोशनी देकर वह सुबह होते अस्तंगत होता है। उसके बादभी वह हररोज थोडी देरसेही आसमानमे आता है और उसका आकार घटता रहता है। आखिर अमावास्याको वह फिरसे गायब हो जाता है। चंद्रमाके इस चक्रके अनुसार महीनेका अवधी तय हो गया। इस तरह दिन, महीना और वर्षका कालावधी सूर्य और चंद्रकी गतिसे निश्चित किया गया।

पुराने जमानेमे न तो किसीके कलाईपर घडी होती थी, न किसीके घरकी दीवारपर। उन दिनों दिनमें सूरज और रातमें चाँदतारोंको देखकर समयका सही अंदाजा लगाया जाता था। कब कौनसा प्रहर चल रहा है यह तो इन्हे देखकर हर किसीके समझमे आता था, जिन्हे खगोलशास्त्रकी थोडीसी जानकारी हो उन विद्वान लोगोंको कौनसा महीना और कौनसी तिथी चल रही होगी उसका पता आसानीसे लग जाता था। जब मुद्रणयंत्र (प्रिंटिंग प्रेसेस) नही थे, तब किसीके पास कोई डायरी, कॅलेंडर, पंचांग आदि नही हो सकता था। समयके बारेमे सारी जानकारी बस आसमानमे देखकरही मिलती थी।

दिन, रात, तिथी, महीना आदि जो कालावधी सूर्यचंद्रसे तय किये जाते हैं वे हर वर्ष रिपीट होते रहते हैं। इस वजहसे सूरज और चंदाको देखकर वर्षोंकी गिनती नही की जा सकती। मगर मनुष्यकी आयु सामान्य रूपसे कई वर्ष होती है और करीब करीब उतनेही साल उसकी यादें भी उसके साथ रहती हैं। जिन दिनों कोई कॅलेंडर या पंचांग नही होता था, साल, वर्ष या संवतकी कोई गिनती नही होती थी, तब कोई घटना भूतकालमें कब घटी ये कैसे बताएँ? इस गुत्थीको सुलझानेके लिये बृहस्पती या गुरू और शनि इन दो ग्रहोंके आकाशमार्गपर होनेवाले चलनका उपयोग किया गया। ये दोनों ग्रह बहुत धीमी गतीसे भ्रमण करते रहते है। सभी बारा राशीयोंमें घूम कर राशीचक्रको पार करनेमे गुरू ग्रहको बारा साल लग जाते हैं। इसका मतलब वह हर राशीमें एक सालभर रहता है। आजकल गुरू ग्रह मिथुन राशीमें चल रहा है। वह वृषभ राशीमे या एक साल पहले होगा या तेरह या पच्चीस या सैंतीस साल पहले। शनि ग्रह तो हर एक राशीमेंसे ढाई सालमे गुजरता है और उसे पूरी परिक्रमा करते करते तीस साल लगते है।  आजकल वह तूल राशीमें है, इसका मतलब वह सिंह राशीमे ३-४ साल या ३३-३४ साल पहले होता होगा। गुरू और शनि इन दोनों ग्रहोंके स्थान देखकर हम साठ सालतककी अवधीमे गुजरे हुवे वर्ष तय कर सकते हैं। आम आदमीके लिये इतना काफी है।

बुध ग्रह हमेशा सूरजके आसपासही रहता है। सूर्योदयसे पहले और सूर्यास्तके बादभी आकाशमे जो आभा रहती है उसकी वजहसे बुध ग्रहका दर्शन आसानासे नही होता। यह ग्रह बहुत उपेक्षित है। मैने किसीभी संदर्ऊमे उसका जिक्र कभी सुना नही, न तो उसकी कोई मूर्ती या मंदिर कहीं देखा। शुक्र ग्रह सबसे ज्यादा प्रकाशमान होता है। वह भी सूरजसे बहुत दूर कभी जाता नही। सू्योदयके पहले या सूर्यास्तके बाद कुछ घंटोंके लिये आसमानमे रहता है। मगर जब रहता है तब आप उसे देखे बिना नही रह सकते। अगर चंद्रमा आकाशमें न हो तो शुक्रही वहाँ राज करता है। मगर कालगणना करनेके वास्ते शुक्रका कोई उपयोग नही होता। आजकल वह सूर्यास्तके बाद पश्चिम दिशामे दिखता है और बहुत सुंदर दिखता है।

अब बचा मंगल ग्रह। यह ग्रह बहुतही नटखट है। कभी वह बहुत ज्यादा प्रकाशमान होता है तो कभी बहुत मंद हो जाता है। कभी उसका आकार बडा दिखता है तो कभी छोटा। कभी वह एक राशीको डेढ महीनेमे लाँघ लेता है तो कभी उतनीही यात्राके लिये उसे पाच छह महिने भी लगते है। और तो और, हर साल एकाध बार वह अपनी जगहपर अड जाता है या वक्री होकर उलटी दिशामें चलने लगता है। कुठ दिन पीछे की ओर जानेके बाद दुबारा घूमजाओ करता है और सीधे रास्तेपर आ जाता है। उसकी इस अनिश्चितताके कारण मंगल ग्रहका कालगणनामे कुछ उपयोग नही होता। उसके भ्रमणमे दिख रही इस उच्छृंखलताने वैज्ञानिकोंको काफी असमंजसमे डाल रखा था। मगर यह भी सच है कि उसी उलझनको सुलझाते सुलझाते सूर्यमालिकाका रहस्य खुल गया था। मंगल ग्रहकी एक और विशेषता यह है कि सिर्फ यह एकही लाल रंगका सितारा है। हिंदू संस्कृतीनुसार लाल रंग शुभ और मांगल्यका प्रतीक होता है। इसी कारण इस ग्रहका नाम 'मंगल' रखा गया होगा। रवि माने सूर्यसे रविवार और सोम याने चंद्रसे सोमवार इनके बाद मंगलवारका क्रम आता है।

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